पढ़ें मिर्जा ग़ालिब की सुकून भरी Top 20 शायरी

Mirza Ghalib Shayari In Hindi

नमस्कार दोस्तों देखा जाए तो इस दुनिया में शेरो शायरी हर किसी को पसंद होती है। और आज के इस दौर में बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें शायरी पसंद है और इनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो शायरी लिखते भी हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं की शेरो शायरी में ऐसा कौन सा नाम है जिसे हर कोई पसंद करता है। दरासल वह है मिर्ज़ा ग़ालिब की शायरी हिंदी में, और इसी लिए आज हम आप लोगों के लिए Mirza Ghalib Ki Shayari In Hindi लेकर आये हैं। जिसे देख आप भी समझ जाओगे  की आखिर क्यों इन्हें इतना बड़ा शायर माना जाता है और आखिर क्यों आज भी लोग इनकी लिखी शायरी को पढ़ते हैं और उसमें खो जाते हैं. तो दोस्तों यह मिर्जा ग़ालिब दर्द शायरी इन हिंदी  जिसे आप आसानी से पढ़ सकते हैं और अपने दोस्तों को व्हाट्सअप और फेसबुक में भी इसे भेज सकते हैं.

ग़ालिब की शायरी हिंदी में

Mirza Ghalib Shayari In hindi
Mirza Ghalib Shayari In Hindi

गुनाह करके कहां जाओगे ग़ालिब
ये जमीं ये आसमा सब उसी का है

Gunah Karke Kaha Jaoge Ghalib
Gunah Karke Kaha Jaoge Ghalib

मशरूफ रहने का अंदाज़ तुम्हें तनहा ना कर दे ग़ालिब
रिश्ते फुर्सत के नहीं तवज्जो के मोहताज़ होते हैं

हमको मालूम है जन्नत की हकीक़त लेकिन 
दिल को खुश रखने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है

मौत पे भी मुझे यकीन है
तुम पर भी ऐतबार है
देखना है पहले कौन आता है
हमें दोनों का इंतज़ार है

जिसे "मैं "की हवा लगी
उसे फिर न दवा लगी न दूआ लगी

हमें पता है तुम कहीं और के मुसाफिर हो
हमारा शहर तो बस यूँ ही रास्ते में आया था

Mirza Ghalib Shayari In Hindi
Mirza Ghalib Shayari In Hindi
इसलिए कम करते हैं ज़िक्र तुम्हारा
कहीं तुम ख़ास से आम ना हो जाओ

उम्र भर ग़ालिब यही ग़लती करते रहे
धूल चेहरे पर थी हम आईना साफ करते रहे

जब लगा था तीर तब इतना दर्द नहीं हुआ था ग़ालिब
ज़ख्म का एहसास तब हुआ जब कमान देखी अपनों के हाथ में

वो उम्र भर कहते रहे तुम्हारे सीने में दिल नहीं
दिल का दौरा क्या पड़ा ये दाग भी धुल गया

मेरे पास से ग़ुजर कर मेरा हाल तक न पूछा
मैं ये कैसे मान जाऊ के वो दूर जाकर रोये

Mirza Ghalib Shayari In Hindi
Mirza Ghalib Shayari In Hindi
कुछ इस तरह से मैंने जिंदगी को आसान कर लिया
किसी से माफी मांग ली किसी को माफ़ कर दिया

वो आयेंगे नये वादे लेकर
तुम पुरानी शर्तों पर ही कायम रहना

मैं नादान था जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिब
यह न सोचा के एक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना

कितना खौफ़ होता है रात के अंधेरे में
जाकर पूछ उन परिंदों से जिनके घर नहीं होते

Mirza Ghalib Shayari In Hindi
Mirza Ghalib Shayari In Hindi
रहने दे मुझे इन अंधेरों में ए-ग़ालिब
कमबख्त रोशनी में अपनों के असली चेहरे सामने आ जाते हैं

तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक उसने ग़ालिब
के सारी उम्र अपना कसूर ढूँढ़ते रहे

तू तो वो जालिम है जो दिल में रहकर भी मेरा न बन सका
और दिल वो काफिर जो मुझ में रहकर भी तेरा हो गया

बे-वजह नहीं रोता इश्क में कोई ग़ालिब
जिसे खुद से बढ़कर चाहो वो रुलाता ज़रूर है

हम जो सबका दिल रखते हैं
सुनो, हम भी एक दिल रखते हैं

Mirza Ghalib Shayari In Hindi
Mirza Ghalib Shayari In Hindi
दुख देकर सवाल करते हो
तुम भी गालिब कमाल करते हो

एक मुर्दे ने क्या खूब कहा है
ये जो मेरी मौत पर रो रहें हैं
अभी उठ जाऊ तो जीने नहीं देंगे

ये चंद दिन की दुनिया है ग़ालिब
यहां पलकों पर बिठाया जाता है
नज़रो से गिराने के लिए

पीने दे शराब मस्जिद में बैठ के
या वो जगह बता जहां खुदा नहीं है

मुझे कहती है तेरे साथ रहूँगी सदा ग़ालिब
बहुत प्यार करती है मुझसे उदासी मेरी

Mirza Ghalib Shayari In Hindi
Mirza Ghalib Shayari In Hindi
गुजर रहा हूँ
यहाँ से भी गुजर जाउँग
मैं वक्त हूँ
कहीं ठहरा तो मर जाउँगा

बर्दाशत नहीं तुम्हें किसी और के साथ देखना
बात शक की नहीं हक की है
कहते हैं जीते हैं उम्मीद पर लोग
हमको जीने की भी उम्मीद नहीं

इस सादगी पे कौन न मर जाए खुदा
लड़ते हैं और हाथ मे तलवार भी नहीं

मज़िल मिलेगी भटक कर ही सही
गुमराह तो वो हैं जो घर से निकले ही नहीं

आता है कौन-कौन तेरे गम को बाँटने ग़ालिब
तू अपनी मौत की अफवाह उड़ा के तो देख

Mirza Ghalib Shayari In Hindi
Mirza Ghalib Shayari In Hindi
ना कर इतना गौरव अपने नशे पे शराब
तुझसे भी ज्यादा नशा रखती है आँखें किसी की

बे-वजह नहीं रोता इश्क में कोई ग़ालिब
जिसे खुद से बढ़कर चाहो वो रूलाता जरूर है

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है

किसी की क्या मजाल थी जो कि हमें खरीद सकता
हम तो खुद ही बिक गये खरीददार देखकर



हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले

Mirza Ghalib Shayari In Hindi
Mirza Ghalib Shayari In Hindi
गैर ले महफ़िल में बोसे जाम के
हम रहें यूँ तश्ना-ऐ-लब पैगाम के
खत लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के
इश्क़ ने “ग़ालिब” निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के"

चंद तस्वीर-ऐ-बुताँ , चंद हसीनों के खतूत
बाद मरने के मेरे घर से यह सामान निकला

न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता
डुबोया मुझको होनी ने, न होता मैं तो क्या होता?

हाथों की लकीरों पर मत जा ए ग़ालिब,
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होता

मोहब्बत में नहीं है फर्क जीने और मरने का,
उसी को देखकर जीते हैं जिस काफिर पर दम निकले

Mirza Ghalib Shayari In Hindi
Mirza Ghalib Shayari In Hindi
दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई,
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई

दर्द जब दिल में हो तो दवा कीजिए,
दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए

आशिक़ हूँ पर माशूक़-फ़रेबी है मिरा काम,
मजनूँ को बुरा कहती है लैला मेरे आगे

इश्क पर ज़ोर नहीं है,
ये वो आतिश  है गालिब कि लगाए न लगे और बुझाए न बुझे


मैं नादान था जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिब
यह न सोचा के एक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी

Mirza Ghalib Shayari In Hindi
Mirza Ghalib Shayari In Hindi
बे-वजह नहीं रोता इश्क़ में कोई ग़ालिब
जिसे खुद से बढ़ कर चाहो वो रूलाता ज़रूर है

फिर उसी बेवफा पे मरते हैं
फिर वही ज़िन्दगी हमारी है
बेखुदी बेसबब नहीं ‘ग़ालिब’
कुछ तो है जिस की पर्दादारी है

खुदा के वास्ते पर्दा न रुख्सार से उठा ज़ालिम,
कहीं ऐसा न हो यहाँ भी वही काफिर सनम निकले

तेरी दुआओं में असर हो तो मस्जिद को हिला के दिखा
नहीं तो दो घूँट पी और मस्जिद को हिलता देख


मोहब्बत मैं नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते है जिस काफिर पे दम निकले

थी खबर गर्म के ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्ज़े ,
देखने हम भी गए थे पर तमाशा न हुआ

तेरे हुस्न को पर्दे की ज़रुरत नहीं है ग़ालिब
कौन होश में रहता है तुझे देखने के बाद

कितने शिरीन हैं तेरे लब के रक़ीब
गालियां खा के बेमज़ा न हुआ
कुछ तो पढ़िए की लोग कहते हैं
आज ‘ग़ालिब ‘ गजलसारा न हुआ

इश्क़ मुझको नहीं वेहशत ही सही
मेरी वेहशत तेरी शोहरत ही सही
काटा कीजिए न तालुक हम से
कुछ नहीं है तो अदावत ही सही

दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई
दोनों को एक अदा में रजामंद कर गई
मारा ज़माने ने ‘ग़ालिब’ तुम को
वो वलवले कहाँ , वो जवानी किधर गई

नादान हो जो कहते हो क्यों जीते हैं “ग़ालिब “
किस्मत मैं है मरने की तमन्ना किसी दिन और

इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना
दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़
वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है

इश्क से तबियत ने जीस्त का मजा पाया,
दर्द की दवा पाई दर्द बे-दवा पाया

मिर्जा ग़ालिब शायरी इन हिंदी

जब लगा था तीर, तब इतना दर्द नहीं हुआ "ग़ालिब"
जख्म का एहसास तो तब हुआ, जब कमान देखी अपनों के हाथ में

हर एक बात पे कहते हो तुम की तू क्या है,
 तुम्ही कहो ये अंदाज़-ए -गुफ़्तगू क्या है 

हैरान हूँ तुझे मस्ज़िद में देखकर ग़ालिब
ऐसा क्या हुआ जो तुझे खुदा याद आ गया

कुछ इस तरह से मैंने जिंदगी को आसां कर लिया ग़ालिब,
किसी से माफ़ी मांग ली तो किसी को माफ़ कर दिया

मत पूछ की क्या हाल है मेरा तेरे पीछे,
तू देख की क्या रंग है तेरा मेरे आगे

रहने दे मुझे इस अँधेरे में ग़ालिब,
कम्बख्त रौशनी में अपनों के असली चेहरे नज़र आ जाते है

वो मिले भी तो खुदा के दरबार में ग़ालिब,
अब तू ही बता मोहोब्बत करते या इबादत

गुज़र जायेगे ये दोर ग़ालिब जरा इत्मीनान तो रख
खुसी ही न ठहरी तो गम की क्या औकात है

दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है,
आखिर इस दर्द की दवा क्या है

आता है कौन-कौन तेरे गम को बाँटने,
ग़ालिब तू अपनी मौत की अफवाह उड़ा के देख

लोग बदलते नहीं ग़ालिब, बेनकाब होते है

ए बुरे वक़्त जरा अदब से पेश आ, क्योकि वक़्त नहीं लगता वक़्त बदलने में

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं कायल,
जब आँख से ही नहीं टपका तो लहू क्या है

ये इश्क नहीं आसां बस इतना समझ लीजिये,
एक आग का दरिया है डूब कर जाना है

हमने मोहोब्बत के नशे में आकर  उसे खुदा बना डाला,
होश तो तब आया जब उसने कहा खुदा किसी एक का नहीं होता 

मुझ से कहती है तेरे साथ रहूंगी सदा ग़ालिब
बहोत प्यार करती है मुझे उदासी मेरी

उम्र भर ग़ालिब यही भूल करता रहा,
धूल चेहरे पे थी और आईना साफ़ करता रहा

हुई मुद्दत की ग़ालिब मर गया पर याद आता है,
वो हर एक बात पर कहना की, यूं होता तो क्या होता 

तुम न आए तो क्या सहर न हुई
हाँ मगर चैन से बसर न हुई
मेरा नाला सुना ज़माने ने
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई

पीने दे बैठ कर मस्ज़िद में ग़ालिब
वरना वो जगह बता जहाँ खुदा नहीं

हम तो फनाह हो गए उसकी आँखें देखकर ग़ालिब,
ना जाने वो आईना कैसे देखते होंगे 

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तो दोस्तों महान शायर Mirza Ghalib के द्वारा लिखी यह शेरो शायरी आप लोगों को कैसी लगी, हमें उम्मीद है की Mirza Ghalib Shayari In Hindi जोकि ख़ास तोर पर हम आप लोगों के लिए लेकर आये हैं वह आपको अच्छी लगी होगी, और आपको हमारा यह आर्टिकल कैसा लगा हमें कमेंट कर के जरूर लिखें, आर्टिकल पढ़ने के लिए धन्यवाद.