पढ़ें Full Chanakya Neeti In Hindi (500+ नीतियां)

चाणक्य नीति में लिखी 500+ Top बातें In Hindi

दोस्तों आप सभी का एक बार फिर से हमारे व्लोग में स्वागत है, आज हम आपके सामने लेकर हाजिर हुए हैं चाणक्य निति में लिखी बो बातें जिन्हें पढ़ने के बाद आपके जीवन में बहुत से सकारत्मक बदलाव होंगे। तो दोस्तों चाणक्य के बारे में आप सभी पहले से ही जानते हैं पर उनके द्वारा लिखी वो बातें जो आपको पता नहीं हैं उनके बारे में आज आप जान लेंगे। और साथ में आपको ये भी पता चलेगा कि क्यों चाणक्य को इतिहास में इतना महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। तो चिलए दोस्तों तो शुरु करते हैं।
Chanakya Neeti

मूर्ख शिष्य को उपदेश देने, दुष्ट-व्यभिचारिणी स्त्री का पालन-पोषण करने,   धन के नष्ट होने तथा दुखी व्यक्ति के साथ व्यवहार रखने से बुद्धिमान व्यक्ति को भी कष्ट उठाना पड़ता है।


दुष्ट स्वभाव वाली, कठोर वचन बोलने वाली, दुराचारिणी स्री और धूर्त, दुष्ट स्वभाव वाला मित्र, सामने बोलने वाला मुंहफट नौकर और ऐसे घर में निवास जहां सांप के होने की संभावना हो, ये सब बातें मृत्यु के समान हैं।


किसी कष्ट अथवा आपत्तिकाल से बचाव के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए और धन खर्च करके भी स्त्रियों की रक्षा करनी चाहिए, परन्तु स्त्रियों और धन से भी अधिक आवश्यक यह है कि व्यक्ति अपनी रक्षा करे।

जिस देश में आदर-सम्मान नहीं और न ही आजीविका का कोई साधन है, जहां कोई बन्धु-बाधव, रिश्तेदार भी नहीं तथा किसी प्रकार की विद्या और गुणों की प्राप्ति की संभावना भी नहीं, ऐसे देश को छोड़ ही देना चाहिए। ऐसे स्थान पर रहना उचित नहीं।

काम लेने पर नौकर-चाकरों की, दुख आने पर बन्धु-बान्धवों की, कष्ट आने पर मित्र की तथा धन नाश होने पर अपनी पत्नी की वास्तविकता का ज्ञान होता है।

किसी रोग से पीड़ित होने पर, दुख आने पर, अकाल पड़ने पर, शत्रु की ओर से संकट आने पर, राज सभा में, श्मशान अथवा किसी की मृत्यु के समय जो व्यक्ति साथ नहीं छोड़ता, वास्तव में वही सच्चा बन्धु माना जाता है।

जो मनुष्य निश्चित को छोड़कर अनिश्चित के पीछे भागता है, उसका कार्य या पदार्थ नष्ट हो जाता है।

विष में भी यदि अमृत हो तो उसे ग्रहण कर लेना चाहिए। अपवित्र और अशुद्ध वस्तुओं में भी यदि सोना अथवा मूल्यवान वस्तु पड़ी हो तो वह भी उठा लेने के योग्य होती है। यदि नीच मनुष्य के पास कोई अच्छी विद्या, कला अथवा गुण है तो उसे सीखने में कोई हानि नहीं। इसी प्रकार दुष्ट कुल में उत्पन्न अच्छे गुणों से युक्त स्त्री रुपी रत्न को ग्रहण कर लेना चाहिए।

पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों का आहार अर्थात भोजन दोगुना होता है, बुद्धि चौगुनी, साहस छः गुना  और कामवासना आठ गुना होती है।

झुठ बोलना, बिना सोचे-समझे किसी कार्य को प्रारम्भ कर देना, दुस्साहस करना, छलकपट करना, मूर्खतापूर्ण कार्य करना, लोभ करना, अपवित्र रहना और निर्दयता, स्त्रियों में प्रायः ये देष पाए जाते हैं।

भोजन के लिए अच्छे पदार्थ का प्राप्त होना, उन्हें खाकर पचाने की शक्ति होना, सु्न्दर स्त्री का मिलना, उसके उपभोग के लिए कामशक्ति होना, धन के साथ-साथ दान देने की इच्छा होना- ये बातें मनु्ष्य को किसी महान तप के कारण प्राप्त होती हैं।

जिसका बेटा वश में रहता है, पत्नी पति की इच्छा के अनुरुप कार्य करती है और जो व्यक्ति धन के कारण पूरी तरह संतुष्ट है, उसके लिए पृथ्वी ही स्वर्ग के समान है।

जो पीठ पीछे कार्य को बिगाड़े और सामने होने पर मीठी-मीठी बातें बनाए, ऐसे मित्र को उस घड़े के समान त्याग देना चाहिए जिसके मुंह पर तो दुध भरा हुआ है परन्तु अन्द विष हो।

जो मित्र खोटा है, उस पर विश्वास नहीं करना चाहिए और जो मित्र है, उस पर भी अति विश्वास नहीं करना चाहिए क्योंकि ऐसा हो सकता है कि वह मित्र कभी नाराज होकर सारी गुप्त बातें प्रकट कर दे।

मन से सोचे हुए कार्य को वाणी द्वारा प्रकट नहीं करना चाहिए, परन्तु मननपूर्वक भली प्रकार सोचते हुए उसकी रक्षा करनी चाहिए और चुप रहते हुए उस सोची हुई बात को कार्यरुप में बदलना चाहिए।

सभी पहाड़ों पर रत्न और मणियां नहीं मिलती। न ही प्रत्येक हाथी के मस्तक में गजमुक्ता नामक मणि होती है। प्रत्येक वन में चन्दन भी उत्पन्न नहीं होताष इसी प्रकार सज्जन पुरुष सब स्थानों पर नहीं मिलते।

वे माता-पिता बच्चों के शत्रु हैं, जिन्होेने बच्चों को पढ़ाया-लिखाया नहीं, क्योंकि अनपढ़ बालक विद्वानों के समूह में शोभा नहीं पाता, उसका सदैव तिरस्कार होता है। विद्वानों के समूूह में उसका अपमान उसी प्रकार होता है जैसे हंसों के झुंड़ में बगुले की स्थिती होती है।

 जो वृक्ष बिल्कुल नदी के किनारे पैदा होते हैं, जो स्त्री दूसरों के घर में रहती है और जिस राजा का मंत्री अच्छे नहीं होते व जल्दी ही नष्ट हो जाते हैं, इसमें कोई संशय नहीं है।

बुरे चरित्र वाले, अकारण दूसरे को हानि पहुंचाने वाले तथा गन्दे स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के साथ जो पुरुष मित्रता करता है, वह जल्दी ही नष्ट हो जाता है।

दुष्ट व्यक्ति और सांप, इन दोनों में से किसी एक को चुनना हो तो दुष्ट व्यक्ति की अपेक्षा सांप को चुनना ठीक होगा, क्योंकि सांप समय आने पर ही काटेगा, जबकि दुष्ट व्यक्ति हर समय हानि पहुंचाता रहेगा।

उद्योग अर्थात पुरुषार्थ करने वाला व्यक्ति दरिद्र नहीं हो सकता, प्रभु का नाम जपते रहने से मनुष्य पाप में लिप्त नहीं होता, मौन रहने पर लड़ाई-झगड़े नहीं होते तथा जो व्यक्ति जागता रहता है अर्थात सतर्क रहता है, उसे किसी प्रकार का भय नहीं रहता।

अत्यन्त रुपवती होने के कारण ही सीता का अपहरण हुआ, अधिक अभिमान होने के कारण रावण मारा गया, अत्यधिक दान देने के कारण राजा बलि को कष्ट उठाना पड़ा, इसलिए किसी भी कार्य में अति नहीं करनी चाहिए। अति का सर्वत्र त्याग कर देना चाहिए।

जिस प्रकार एक ही सूखे वृक्ष में आग लगने से सारा जंगल जलकर राख हो जाता है, उसी प्रकार एक मूर्ख और कुपुत्र सारे कुल को नष्ट कर देता  है।

पांच वर्ष की आयु तक पुत्र से प्यार करना चाहिए, इसके बाद दस वर्ष तक उसकी ताड़ना की जा सकती है और उसे दंड दिया जा सकता है, परन्तु सोलह वर्ष की आयु में पहुंचने पर उससे मित्र के समान व्यवहार करना चाहिए।

जहां मूर्खों की पूजा नहीं होती, जहां अन्न आदि काफी मात्रा में इकट्ठे रहते हैं, जहां पति-पत्नी में किसी प्रकार की कलह, लड़ाई-झगड़ा नहीं, ऐसे स्थान पर लक्ष्मी स्वयं आकर निवास करने लगती है।

विद्या में कामधेन के गुण होते हैं। उससे असमय में ही फलों की प्राप्ति होती है। विदेश में विद्या ही माता के समान रक्षा और कल्याण करती है, इसलिए विद्या को गुप्तधन कहा गया है।

इस संसार में दुखी लोगों को तीन बातों से ही शान्ति प्राप्त हो सकती है- अच्छी संतान, पतिव्रता स्त्री और सज्जनों का संग।

 कोई भी अधिकारी लोभरहित नहीं होता, श्रृंगार प्रेमी में कामवासना की अधिकता होती ही है। जो व्यक्ति चतुर नहीं है, वह मधुरभाषी भी नहीं हो सकता तथा साफ बात कहने वाला व्यक्ति कभी भी धोकेबाज नहीं होता।

कामवासना के समान कोई रोग नहीं। मोह से बड़ा कोई शत्रु नहीं। क्रोध जैसी कोई आग नहीं और ज्ञान से बढ़कर इस संसार में सुख देने वाली कोई वस्तु नहीं।

जन्म से अंधे को, कामांध को और शराब आदि के नशे में मस्त व्यक्ति को कुछ दिखाई नहींं देता। स्वार्थी व्यक्ति की भी यही स्थिती है क्योंकि वह उस व्यक्ति के दोषों को देख नहीं पाता, जिससे उसके स्वार्थों की पूर्ति होती हो।

ऋणी पिता अपनी संतान का शत्रु होता है। यही स्थिती बुरे आचरण वाली माता की भी है। सुन्दर पत्नी अपने पति और मूर्ख पुत्र अपने माता-पिता का शत्रु होता है।

लोभी को धन देकर, अभिमानी को हाथ जोड़कर, मूर्ख को उसकी इच्छा के अनुसार कार्य करके और विद्वान को सच्ची बात बताकर वश में करने की प्रयत्न करना चाहिए।

बुरे राज्य की अपेक्षा किसी प्रकार का राज्य न होना अच्छा है, दुष्ट मित्रों के बजाय मित्र न होना अच्छा है, दुष्ट शिष्यों की जगह शिष्य न होना अधिक अच्छा है और दुष्ट पत्नी का पति कहलाने से अच्छा है कि पत्नी न हो।

बुद्धिमान व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों को वश में करके समय के अनुरुप अपनी क्षमता को तौलकर बगुले के समान अपने कार्य को सिद्ध करना चाहिए।

समय पर उठना, युद्ध के लिए सदा तैयार रहना, अपने बन्धुओं को उनका उचित हिस्सा देना और स्वयं आक्रमण करके भोजन करना मनुष्य को ये चार बातें मुर्गे से सीखनी चाहिए।

बहुत भोजन करना लेकिन कम में भी संतुष्ट रहना, गहरी नींद लेकिन जल्दी से उठ बैठना, स्वामिभक्ति और बहादुरी ये छह गुण कुत्ते से सीखने चाहिए।

एक बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने धन के नष्ट होने को, मानसिक दुख को, घर के दोषों को, किसी व्यक्ति द्वारा ठगे जाने और अपना अपमान होने की बात किसी पर भी प्रकट न करे, किसी को भी न बताए।

जो व्यक्ति धन-धान्य के लेन-देन में, विद्या अथवा किसी कला को सीखने में, भोजन के समय अथवा व्यवहार में लज्जाहीन होता है, अर्थात् संकोच नहीं करता वह सुखी रहता है।

जो व्यक्ति संतोषरुपी अमृत से तृप्त है, मन से शांत है, उसे जो सुख प्राप्त होता है, वह धन के लिए इधर-उधर दौड़-धूप करने वाले को कभी प्राप्त नहीं होता।

अपनी पत्नी, भोजन और धन-इन तीनों के प्रति मनुष्य को संतोष रखना चाहिए, परन्तु विद्याध्ययन, तप और दान के प्रति कभी सतोष नहीं करना चाहिए।

अग्नि, गुरु, गाय, कुंवारी कन्या, बुढ़ा आदमी और छोटे बच्चे- इन सबको पैर से कभी नहीं छूना चाहिए।

मनुष्य को अत्यन्त सरल और सीधा भी नहीं होना चाहिए। वन में जाकर देखो, सीधे वृक्ष काट दिए जाते हैं और टेढ़े-मेढे गांठों वाले वृक्ष खड़े रहते है।

दीपक अन्धकार को खाता है और उससे काजल की उत्पत्ति होती है। इसी प्रकार मनुष्य जैसा अन्न खाता है, वैसी ही उसकी संतान उत्पन्न होती है।

अपच की स्थिति में जल पीना औषधि का काम देता है और भोजन के पच जाने पर जल पीने से शरीर का बल बढ़ता है, भोजन के बीच में जल पीना अमृत के समान है, परन्तु भोजन के अन्त में जल का सेवन विष के समान हानिकारक होता है।

वृद्धावस्था में पत्नी का देहान्त हो जाना, धन अथवा सम्पत्ति का भाई-बन्धुओं के हाथ में चले जाना और भोजन के लिए दुसरों पर आश्रित रहना, यह तोनों बातें मनुष्य के लिए मृत्यु समान दुखदायी हैं।

विषहीन सांप को भी अपना फन फैलाना चाहिए, उसमें विष है या नीं, इस बात को कोई नहीं जानता, हां, उसके इस आडम्बर से अथवा दिखावे से लोग भयभीत अवश्य हो सकते है।

धन से हीन मनुष्य दीन-हीन नहीं होता, यदि वह विद्या धन से युक्त हो तो, परन्तु जिस मनुष्य के पास विद्या रुपी रत्न नहीं है, वह सभी चोजों से हीन माना जाता है।

भली-प्रकार आंख से देखकर मनुष्य को आगे कदम रखना चाहिए, कपड़े से छानकर जल पीना चाहिए, शास्त्र के अनुसार कोई बात कहनी चाहिए और कोई भी कार्य मन से भली प्रकार सोच-समझकर करना चाहिए।

यदि सुख की इच्छा हो तो विद्या अध्ययन का विचार छोड़ देना चाहिए और यदि विद्यार्थी विद्या सीखने की इच्छा रखता है तो उसे सुख और आराम का त्याग कर देना चाहिए, क्योंकि सुख चाहने वाले को विद्या प्राप्त नहीं हो सकती और जो विद्या प्राप्त करना चाहता है, उसे सुख नहीं मिल सकता।

भाग्य की महिमा अपरम्पार है क्योंकि वह निर्धन अर्थात भिखारी को पल में राजा बना सकता है और राजा को कंगाल। इसी तरह भाग्य के ही कारण धनवान व्यक्ति निर्धन बन जाता है और निर्धन धनवान।

भले ही मनुष्य सिंह और बाघ आदि हिंसक जानवरों से युक्त वन में निवास करे, किसी पेड़ पर अपना घर बना ले, वृक्षों के पत्ते और फल खाकर तथा पानी पीकर गुजारा कर ले, तिनकों की शय्या पर सो ले, फटे-पुराने वृक्षों की छाल के कपड़े पहन ले, परन्तु अपने भाई-बन्धुओं में धन से रहित अर्थात दरिद्र बनकर जीवन न बिताए।

अन्न से दस गुणा अधिक शक्ति उसके आटे में है, आटे से दस गुणा अधिक शक्ति दूध में है, दूध से आठ गुणा अधिक शक्ति मांस में है और मांस से दस गुणा अधिक शक्ति घी में है।

दान देने की इच्छा, मधुर भाषण, धैर्य और उचित अथवा अनुचित का ज्ञान, ये चार गुण मनुष्य में सहज-स्वभाव से ही होते हैं, अभ्यास से इन्हें प्राप्त नहीं किया जा सकता।

हाथी लंबे-चौड़े शरीर वाला होता है परन्तु उसे बहुत छोटे से अंकुश द्वारा वश में किया जाता  है। दीपक जलने पर अंधकार नष्ट हो जाता है तो क्या अंधकार दीपक के आकार का होता है? हथौड़े की चोट करने से बड़े-बड़े पर्वत गिर पड़ते हैं, तो क्या पर्वत का आकार-प्रकार हथौडे से छोटा होता है? प्रत्येक वस्तु अपने तेज के कारण ही बलवान होती है, लंबा-चौड़ा शरीर कोई मायने नहीं रखता है।

जिस प्रकार नीम के वृक्ष को दूध और घी से सींचने पर भी उसमें मिठास पैदा नहीं होती, उसी प्रकार दुर्जन व्यक्ति अनेक प्रकार से समझाने-बुझाने पर भी सज्जन नहीं हो पाता।

व्यक्ति सभी स्थानों से कुछ न कुछ सीख सकता है। उसे राजपुत्रों से नम्रता और सुशीलता, विद्वानोे से प्रिय वचन बोलना जुआरियों से मिथ्या-भाषण अरर्थात सही स्थिति का पता न लगने देना और स्त्रियों से छल करना सीखना चाहीए।

जैसे बूंद-बूंद से घड़ा भर जाता है, उसी प्रकार निरंतर इकट्ठा करते रहने से धन, विद्या और धर्म की प्राप्ति होती है।

जो बातें बीत चुकी है, उन पर शोक नहीं करना चाहिए और भविष्य की भी चिन्ता नहीं करनी चाहिए बुद्धिमान लोग वर्तमान समय के अनुसार कार्य में लगे रहते है।

जिस प्रकार हजारों गायों में बछड़ा केवल अपनी मां के ही पास जाता है, उसी प्रकार जो कर्म किया जाता है, वह कर्म करने वाले के पीछे-पीछे चलता है।

दरिद्रता, रोग, दुख, बन्धन तथा आपत्तियांं- ये सब मनुष्य के अधर्म रुपी वृक्ष के फल हैं।

धार्मिक कथा आदि के सुनने के समय, श्मशान भूमि में और रोगी होने पर मनुष्य के मन में जो सद्बुद्धि उत्पन्न होती है, यदि वह सदैव स्थिर रहे तो मनुष्य संसार के बन्धनों से छूट सकता है।

अग्नि, जल, स्त्रियां, मूर्ख, सांप और राजपरिवार का सेवन करते समय मनुष्य को सदैव सावधान रहना चाहिए, क्योंकि ये छह कभी भी मृत्यु का कारण हो सकते हैं।

बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि सिद्ध की हुई औषधि, अपने द्वारा किए जाने वाले धरमाचरण, घर के दोष, स्त्री के साथ संभोग, कुभोजन तथा सुने हुए निन्दित वचन किसी के सामने प्रकट न करे।

गन्दे कपड़े पहनने वाले, गन्दे दांतों वाले अर्थात दांतों की सफाई न करने वाले, अधिक भोजन करने वाले, कठोर वचन बोलने वाले, सूर्य़ उदय होने तथा सूर्यास्त के समय सोने वाले व्यक्ति को लक्ष्मी-स्वास्थ्य, सौन्र्दर्य और शोभा त्याग देती है, भले ही विष्णु क्यों न हो।

जब मनुष्य के पास धन नहीं रहता तो उसके मित्र, स्त्री, नौकर-चाकर और भाई-बन्धु सब उसे छोड़कर चले जाते हैं। यदि उसके पास फिर से धन-सम्पत्ति आ जाए तो वे फिर उसका आश्रय ले लेते हैं। संसार में धन ही मनुष्य का बन्धु है।

अन्याय से कमाया हुआ धन अधिक से अधिक दस वर्ष तक आदमी के पास ठहरता है और ग्यारहवां वर्ष प्रारंभ होते ही ब्याज और मूल सहित नष्ट हो जाता है।

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